RBI ने बढ़ाया रिस्क वेट, क्या अब लोन पर देना होगा ज्यादा ब्याज? 2023

क्या है रिस्क वेट?

हमारे न्यूज प्लेटफॉर्म मे आपका स्वागत है, हमारा आज का विषय है। क्या है रिस्क वेट? तो चलिए जानते हैं ये चर्चा में क्यों है?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक आरबीआइ ने बैंकरों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को रिस्क वेट या जोखिम भार के लिए अधिक पूंजी आरक्षित करने का निर्देश दिया है। दरअसल आरबीआई के इस कदम का उद्देश्य सुरक्षित व्यक्तिगत ऋण और क्रेडिट कार्ड आदि में देखी गई वृद्धि पर लगाम लगाना है।

रिस्क वेट
संक्षिप्त में जानते हैं कि रिस्क वेट क्या है?

यह एक बैंक के पोर्टफोलियों में विभिन्न परिसंपत्तियों को दिए गए संख्यात्मक मान है, जो प्रत्येक परिसंपत्ति से जुड़े कथित जोखिम को दर्शाते हैं। यह कार एक सुरक्षित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि बैंक पर्याप्त पूंजी भंडार बनाए रखें जो इन परिसंपत्तियों से होने वाले संभावित नुकसान को कवर करने के लिए पर्याप्त हो।

आपको बता दें कि बैंक के न्यूनतम पूंजी पर्याप्तता अनुपात बनाए रखने के लिए बाध्य है, जिसकी गणना बैंक की पूंजी और उसकी जोखिम भारत परिसंपत्तियों के अनुपात के रूप में की जाती है। उच्च जोखिम वाली परिसंपत्तियों के लिए बड़ी मात्रा में पूंजी आरक्षित करने की आवश्यकता होती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि बैंको के पास संभावित नुकसान को अवशोषित करने के लिए पर्याप्त बफर है।

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चलिए एक नजर डालते हैं रिस्क वेट में परिवर्तन को प्रभावित करने वाले कारक पर।

विकसित होते जोखिम भारतीय रिज़र्व बैंक आरबीआई लगातार जोखिम परिदृश्य का आकलन करता है। यदि कुछ क्षेत्रों या ऋणों को आर्थिक बाजार या नियामक कारकों के कारण रिस्क वेट माना जाता है तो आरबीआई बढ़े हुए जोखिम को सटीक रूप से प्रतिबिंबित करने के लिए जोखिम भार को समायोजित कर सकता है।

निवारक उपाय आर्थिक तनाव या विशिष्ट क्षेत्रों में चुनौतियों के दौरान आरबीआई निवारक उपाय के रूप में जोखिम भार बढ़ाने का विकल्प चुन सकता है। इस सक्रिय समायोजन का उद्देश्य वित्तीय प्रणाली के भीतर स्थिरता को बढ़ावा देकर सम्भावित घाटे के खिलाफ़ बैंको को मजबूत करना है।

रिस्क वेट

बढ़ी हुई रिस्क वेट के निहितार्थ।

उच्च जोखिम भार के कारण बैंको को अधिक पूंजी आवंटित करने की आवश्यकता होती है जिससे संभावित रूप से ऋण देना और विस्तार सीमित हो जाता है। विनियामक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बैंको को अतिरिक्त पूंजी की आवश्यकता हो सकती है जिससे ऋण देने की प्रथा ये और ऋण उपलब्धता प्रभावित होगी। बैंक अपने समग्र जोखिम प्रोफाइल में बदलाव करते हुए जोखिमपूर्ण संपत्तियों का पुनर्मूल्यांकन और विनिवेश भी कर सकते हैं।

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