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DUNKI FULL REVIEW: SHAHRUKH KHAN

DUNKI :- फ़िल्म में एक सीन है जब लंदन में तापसी पन्नू एक पुतला बना के पैसे कमा रही थी और उसके सर के ऊपर से एक जहाज इंडिया जा रहा था। इस एक दृश्य में ही प्यार, वफ़ा, बेवफाई, देश प्रेम और सपनों के टूटने और बनने की कहानी फील हो जाती है। इतने अलग अलग भाव एक दृश्य में बिना संवादों के क्रिएट करना ही राजकुमार हिरानी की खासियत है। रिव्यु करेंगे फ़िल्म ढंग की।

DUNKI

पंजाब का कनाडा और लंदन प्रेम किसी से छुपा नहीं है। हर कोई जानता है वहाँ से कितनी बड़ी तादाद में लड़के लड़कियां वीजा के लिए अप्लाई करते हैं। उनके लिए लंदन जाना सपनों के साकार होने जैसा है। इस कॉन्सेप्ट पर एक इमोशनल कॉमेडी ड्रामा फ़िल्म बनाना आसान नहीं रहता क्योंकि ये जो सब्जेक्ट है ना, वो कई मायनों में बहुत सेंसिटिव भी है और अगर इस सब्जेक्ट पर फ़िल्म बनाओ भी तो आपको हर ऐंगल से इसे जस्टिफाई करने के 771 सोशल मैसेज भी देना होगा। तभी फ़िल्म सफल हो सकती है और राजकुमार हिरानी ने ठीक वैसा ही कर दिखाया है।

यहाँ फॉरेन जाने के सॉलिड रीज़न को दिखाने के साथ साथ लंदन में पहुँचकर क्या कुछ सहना पड़ता है वो भी दिखाया गया है और साथ में एक देशभक्ति ऐंगल फ़िल्म को परफेक्ट बनाती है। फ़िल्म का स्क्रीनप्ले इतने तरीके से लिखा गया है की कोई भी सीन यूज़लेस नहीं लगता। कम समय में दृश्यों को इफेक्टिव तरीके से दिखाना एक अच्छे स्क्रीनप्ले राइटर की खासियत होती है और यही रीज़न है की एक ऐसी कहानी जिसे ढंग से बताने में अधिक समय लिया जा सकता था। उसे 2:40 में अच्छे तरीके से समझा दिया जाता है। स्पेसिअली मेन्शन करना चाहूंगा जर्नी पार्ट की ।

जब SHAHRUKH KHAN और उसके दोस्त पंजाब से इंग्लैंड के लिए ट्रैवल करते हैं, इस जर्नी में होने वाली तकलीफ़ो और मुसीबतों को कम दृश्यों में इतने अच्छे से दिखाया गया है कि आसान ऑडियंस आप DUNKI रूट की पीड़ा को समझ भी पाएंगे और कहानी आपको खींची हुई भी नहीं लगेगी। फ़िल्म का फर्स्ट हाफ जहाँ कॉमेडी सीन्स आपको गुदगुदाने का पूरा मौका देती है, वहीं सेकंड हाफ गुदगुदाने के साथ साथ कुछ मौकों पर रुलाने का काम भी कर जाती है। राजकुमार हिरानी कॉमेडी सीन्स में भी मास्टर है।

एक दृश्य है जहाँ SHAHRUKH का एक दोस्त नाई का काम करता है। उसका मालिक एक ग्राहक की तरफ इशारा करके उसे कहता है कि इसके बाल सेट कर दें। उस ग्राहक के सर पर चार बाली थे। अब ये मोमेंट वैसे भी फन क्रिएट कर ही रहा था, लेकिन उसमें एक्स्ट्रा एलिमेंट ये डाला जाता है कि पीछे से रेडियो पर गाना बजता है उड़ें जब जब जुल्फें तेरी तो इस तरह का एक एक्स्ट्रा एलिमेंट राजू हिरानी सीन में ढूंढ लेते हैं। जो कॉमिक्स सीन को और ज्यादा कॉमिक बना देता है। वो भी बिना किसी संवाद के ऐसे फिल्ममेकर या ऐक्टर हैं। ये उनका कर्तव्य बनता है की फ़िल्म कोई गलत मैसेज ना दे।

और कोई कितना भी कहे की एक फ़िल्म देख लेने से कोई गैंगस्टर नहीं बन जाता। लेकिन सच तो ये है की फ़िल्में समाज पर अपना प्रभाव छोड़ती हैं। लोग इन्हें देखकर प्रभावित होते हैं। ये मैं इसलिए भी बता रहा हूँ कि फ़िल्म में एक सूइसाइड का बेहद इमोशनल दृश्य है। ऑफ कोर्स सीन अंदर तक झकझोर देने का काम करती है। बट सबसे अच्छा मुझे ये लगा कि जीस तरीके से शराब सिगरेट पीने वाले सीन में एक वोर्डिंग लिखी आती है कि धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। उसी प्रकार से इस दृश्य में एक वोर्डिंग लिखी आती है कि आत्महत्या किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। इसे कहते है फिल्ममेकर की नैतिक जिम्मेदारी

कौन? फ़िल्म से क्या सीख रहा है? नहीं सीख रहा है, वो एक अलग बात है। ये एक सेफ स्टेप था ऐंड आई रियली अप्रीशीएट राजू हिरानी सर एक्टिंग पर चर्चा करनी हो तो शुरुआत SHAHRUKH खान से करेंगे। ये साल SHAHRUKH के लिए न केवल लकी रहा बल्कि पठान जवान के बाद अब DUNKI के तौर पर उन्होंने एक रिस्क भी लिया और पॉज़िटिव वे में देखें तो ये एक तरह का एक्सपेरिमेंट भी था जहाँ उन्होंने एक आम युवक का किरदार करना स्वीकारा । तब जब ऐक्शन हीरो के रूप में उनकी पिछली दोनों फ़िल्में कई 100,00,00,000 कमा चुकी थी। दूसरी बात कुछ ऐसे मोमेंट SHAHRUKH KHAN की हर फ़िल्म में रहते हैं।

जहाँ वो एक्टिंग में कमाल कर जाते हैं। इस फ़िल्म में भी कुछ ऐसे दृश्य है जहाँ कभी कुछ बोल के तो कभी बिना बोले भी यानी एक्स्प्रेशन से वो समां बांध देते हैं और एग्जाम्पल एक दृश्य जब कोर्ट के बाहर तापसी पन्नू SHAHRUKH KHAN से मिलने आती है। हालांकि यह एक तरह का मोमेंट भी था। SHAHRUKH इसमें दो एज ग्रुप निभा रहे।

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